शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

बिजयदशमी महोत्सव
-: गीत :-
जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान।
प्राची की चंचल किरणों पर आया स्वर्ण विहान॥ जाग उठा...
स्वर्ण प्रभात खिला घर-घर में जागे सोये वीर
युध्दस्थल में सज्जित होकर बढ़े आज रणधीर
आज पुनः स्वीकार किया है असुरों का आह्वान॥ जाग उठा...
सहकर अत्याचार युगों से स्वाभिमान फिर जागा
दूर हुआ अज्ञान पार्थ का धनुष-बाण फिर जागा
पांचजन्य ने आज सुनाया संसृति को जयगान॥जाग उठा...
जाग उठी है वानर-सेना जाग उठा वनवासी
चला उदधि को आज बाँधने ईश्वर का विश्वासी
दानव की लंका में फिर से होता है अभियान॥।जाग उठा...
खुला शम्भु का नेत्र आज फिर वह प्रलयंकर जागा
तांडव की वह लपटें जागी वह शिवशंकर जागा
तालताल पर होता जाता पापों का अवसान॥जाग उठा...
ऊपर हिम से ढकी खड़ी हैं वे पर्वत मालाएँ
सुलग रही हैं भीतर-भीतर प्रलयंकर ज्वालाएँ
उन लपटों में दीख रहा है भारत का उत्थान॥।जाग उठा...

-: सुभाषित :-
नाभिषेको संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने।
विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता॥
अर्थ:- कोई और सिंह का वन के राजा जैसे अभिषेक या संस्कार नहीं करता है, अपने पराक्रम के बल पर वह स्वयं जंगल का राजा बन जाता है ॥
-: अम्रतवचन :-

"दूसरों से सहायता की आशा करना या भीख माँगना किसी दुर्बलता का चिन्ह है। इसलिये बंधुओं निर्भयाता के साथ यह घोषणा करो की हिंदुस्तान हिंदुओं का ही है। अपने मन की दुर्बलता को बिल्कुल दूर भगा दो।"- डा. हेडगेवार 

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