बुधवार, 15 अप्रैल 2015

अभ्यास ही गुरू है, अनुभव ही सच्चा ज्ञान है।



अभ्यास ही गुरू है, अनुभव ही सच्चा ज्ञान है।
" Exercise is teacher, and Experience is true knowledge."

''स्वामी विवेकानंद''




''अभ्यास ही गुरू है''
''Exercise is teacher"
उदाहरणः- एकलब्य महाभारत का पात्र

              कथा इस प्रकार है
एकलब्य एक भील पुत्र था गुरू द्रोणाचार्य केवल राजकुमारों को ही शिक्षा देते थे। एकलब्य ने उनसे विद्या प्रदान करने का आग्रह किया परंतु उन्होने उसे विद्या देने से मना कर दिया परंतु वह दृढ़ निश्चय करके गुरू के प्रति श्रद्धा रखते हुये उसने द्रोणाचार्य का एकांत जंगल में एक प्रतिदर्श(प्रतिमा) बनाकर उसके सामने ही दैनिक अभ्यास करने लगा और एकलब्य की अपने गुरू पर अगाघ श्रद्धा और उसके अभ्यास का का ही प्रतिफल था कि वह सभी विद्यार्थियों की अपेक्षा ज्यादा पारंगत हुआ। जो कि गुरू के आश्रम में विद्या अघ्ययन करते थे। एकलब्य की विद्या इतनी सिद्धहो चुका था कि उसके सामने सभी    धनुर्धारी बौने प्रतीत हो रहे थे हॉं ये बात अलग है कि उसकी तुलना में बाकी योद्धाओं के पास अस्त्र उच्चकोटि के थे। अब यहां पर कथा में एक और मोड़ आता है कि एकलब्य ने अपने गुरूद्रोणाचार्य को दक्षिणा स्वरूप अपना अंगूठा दे दिया था।
इसके बाद भी उसने हार नहीं मानी और पुनः नित्य अभ्यास में लग गया और बिना अंगूठे के ही उसने अपनी विद्या को पहले की तरह सिद्धकर लिया और अपने जीवन में सफलता प्राप्त की पर पतना होने के बाद भी उसकी अपने गुरू द्रोणाचार्य के प्रति श्रद्धा कम नही हुई।
बाकी संदेश अगले उदाहरण से और स्पस्ट हो जायेगा।

''अनुभव ही सच्चा ज्ञान है''
"Experience is true knowledge."
      कथा इस प्रकार हैः-
      एक जहाज समुद्र में लंबी यात्रा पर निकला था। रास्ते में उसके इंजिन में खराबी आ जाती है उसको ठीक करने के लिये उस विषय के बडे़ बडे़ प्रकांड अभियंता आमंत्रित किये गये। वे सब के सब इस समस्या का सही व संक्षिप्त समाधान खोजने में असफल रहे। इंजिन की संभावित जांच करने के बाद भी उन्होंने सुझाव दिया कि इंजिन को बदलना पड़ेगा। यह सुझाव सुनने में जितना आसान व सरल लगता है उतना ब्यौवहारिक नहीं है। उसी जहाज में एक पुराना कर्मचारी था। जो कि समय की मार से जर्जर हो चुका था। बृद्ध होने के कारण उसकी उपेक्षा की जा रही थी।
पर उसके पास इस समस्या का समाधान था अंत में उसको निरीक्षण के लिये बुलाया गया उसने हथौड़े से इंजिन के एक विशेष हिस्से पर कुछ चोट मारी और चालक दल को इंजिन चालु करने को कहा इंजिन चालु हो गया सही तरह से कार्य करने लगा। सभी यह देखकर हतप्रभ रह गये।
इसका सार है यह है कि
अभ्यास से बहुत कुछ संभव है। पर उन लोगों  ( शिक्षक / गुरूओं )की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये जो अपने जीवन का अनुभव आपको देते हैं। वो भी कम समय में आप ही विचार कीजिये की उस अनुभव को अपने द्वारा अर्जित करने में आपका सम्पूर्ण जीवन लग जायेगा। और यह बुद्धिमत्ता नहीं है।
अगर आपको जीवन में सफल होना है तो
नित्य सिद्ध अभ्यास,गुरूओं का अनुभव,व उनपर आस्था व सम्मान रखें निश्चित ही सफलता आपके चरणों में होगी।

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